Badrinath Temple : बदरीनाथ यात्रा, जिसकी सुरक्षा करते हैं तिमुंडिया वीर
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उत्तराखंड के चार धामों में से एक बदरीनाथ मंदिर (Badrinath Temple) के कपाट खुलने की प्रक्रिया अनोखी और अद्भुत है। सदियों पुरानी इस परंपरा के चरण का एक अलग महत्व है।
डॉ. बृजेश सती
देश के चार प्रमुख धामों में से एक, उत्तर भारत स्थित बदरीनाथ मंदिर (Badrinath Temple) न केवल अपनी दिव्यता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी कपाट खुलने की परंपरा भी अत्यंत अनोखी और विस्तृत है। यह प्रक्रिया केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, सदियों पुरानी परंपराओं और प्रतीकों से जुड़ी एक जीवंत सांस्कृतिक यात्रा है, जिसकी शुरुआत वसंत पंचमी (Vasant Panchami) से होती है और मंदिर के कपाट खुलने तक चलती है।
हर वर्ष वसंत पंचमी के दिन नरेंद्र नगर स्थित टिहरी राजदरबार में विशेष वैदिक विधियों के साथ कपाट खुलने की तिथि (Badrinath Temple Opening Date) तय की जाती है। इसी दिन भगवान विष्णु के अभिषेक के लिए पवित्र तिलों के तेल को पिरोने का दिन और समय भी घोषित होता है। इस पवित्र तेल को जिस विशेष पात्र में रखा जाता है, उसे गाडू घड़ा कहा जाता है।
गाडू घड़ा की यात्रा भी अपने आप में एक धार्मिक अनुष्ठान है। यह तेल कलश सबसे पहले नरेंद्र नगर राजमहल से डिम्मर गांव के लक्ष्मी नारायण मंदिर (Laxmi Narayan Temple, Dimmer) लाया जाता है, जहां यह विशेष पूजन के बाद उत्तर की ओर यात्रा आरंभ करता है। यह यात्रा चार पवित्र पड़ावों से होकर गुजरती है।
पहला दिन और पहला पड़ाव होता है पाखी गांव (Pakhi Village)। दूसरे दिन यात्रा ज्योतिर्मठ के नृसिंह मंदिर (Narsingh Temple, Jyotirmath) पहुंचती है। यात्रा तीसरे दिन पांडुकेश्वर (Yog Dhyan Badri, Pandukeshwar) के योग ध्यान बदरी मंदिर और चौथे दिन बदरीनाथ धाम (Badrinath Dham) पहुंचती है।
इसके अलावा, शंकराचार्य की गद्दी के बदरीनाथ प्रस्थान से एक सप्ताह पहले, मंगलवार या शनिवार को दो धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं - तिमुंडिया वीर का मेला और गरुड़ छाड़।
तिमुंडिया को पैनखंडा क्षेत्र का रक्षक माना जाता है। यह आयोजन बदरीनाथ यात्रा (Badrinath Yatra) की कुशलता और सुरक्षा के लिए किया जाता है। इस मेले में स्थानीय लोग और श्रद्धालु भाग लेते हैं, और यह एक सांस्कृतिक उत्सव का रूप ले लेता है।
गरुड़ छाड़ (Garud Chhad)
यह आयोजन गरुड़जी के बदरीनाथ धाम (Badrinath Dham) गमन से एक दिन पहले होता है। इसका प्रतीकात्मक अर्थ है कि भगवान नारायण अपने वाहन गरुड़ पर सवार होकर नृसिंह मंदिर (Narsingh Temple) से बदरीपुरी चले गए हैं। यह एक भव्य समारोह होता है, जिसमें भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
शंकराचार्य की गद्दी के प्रस्थान से पहले, नृसिंह मंदिर में बदरीनाथ मंदिर (Badrinath Temple) के मुख्य पुजारी द्वारा पूजा-अर्चना की जाती है। इसके बाद आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी और गरुड़ जी का चल विग्रह योग ध्यान मंदिर, पाण्डुकेश्वर लाया जाता है। रात्रि विश्राम के बाद उद्धव और कुबेर की चल उत्सव मूर्तियां भव्य शोभायात्रा के साथ बदरीनाथ धाम लाई जाती हैं। अगले दिन, तय मुहूर्त में मंदिर के कपाट खोले जाते हैं।
पहले दिन सबसे पहले द्वार पूजा की जाती है। फिर मुहूर्त देखकर मंदिर के मुख्य द्वार से मुख्य पुजारी, धर्माधिकारी और हकहकूकधारी अंदर प्रवेश करते हैं। अखंड ज्योति का दर्शन मुख्य आकर्षण होता है। खास बात यह है कि पहले दिन मंदिर दिनभर श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खुला रहता है।
Badrinath Temple के कपाट खुलने का मुहूर्त
मध्य हिमालय स्थित बदरीनाथ मंदिर के कपाट खुलने की तिथि का निर्धारण वसंत पंचमी के दिन टिहरी के राजदरबार (नरेंद्र नगर) में किया जाता है। टिहरी राजपरिवार के प्रमुख की जन्म कुंडली देखकर मंदिर के कपाट खुलने की तिथि तय होती है। राजपरिवार के सदस्यों के अलावा, मंदिर समिति के धर्माधिकारी, वेदपाठी और राजदरबार के राजपुरोहित वैदिक पंचांग देखकर कपाट खुलने की तिथि की घोषणा करते हैं।
गाडू घड़ा (तेल कलश)
बदरीनाथ धाम (Badrinath Dham) के कपाट खुलने की तिथि तय करने की प्रक्रिया की शुरुआत गाडू घड़ा (तेल कलश) नृसिंह मंदिर, जोशीमठ से पूजा अर्चना के बाद योग बदरी पांडुकेश्वर के लिए रवाना होती है। इसके बाद डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंचायत गाडू घड़ा को राजमहल सौंपता है। वसंत पंचमी को राजमहल में तिलों का तेल पिरोकर कपाट खुलने से पूर्व बदरीनाथ धाम पहुंचता है।
कपाट खुलने के बाद यही तेल भगवान बदरी विशाल के नित्य अभिषेक में प्रयोग किया जाता है। परंपरानुसार, नृसिंह मंदिर में बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति द्वारा तेल कलश को मंदिर भंडार से डिमरी पंचायत प्रतिनिधियों को सौंपा जाता है। इसके बाद नृसिंह मंदिर और वासुदेव मंदिर में पूजा अर्चना के बाद डिमरी पंचायत तथा मंदिर समिति के अधिकारी गाडू घड़ा के साथ योग बदरी पांडुकेश्वर जाते हैं।
योग बदरी पांडुकेश्वर में पूजा अर्चना के बाद गाडू घड़ा नृसिंह मंदिर, जोशीमठ लाया जाता है। दिन के भोग के बाद गाडू घड़ा को लक्ष्मी नारायण मंदिर, डिम्मर ले जाया जाता है। इसके बाद गाडू घड़ा तेल कलश डिम्मर (चमोली) से ऋषिकेश और वसंत पंचमी को तेल कलश राजमहल, नरेंद्र नगर पहुंचता है।
वसंत पंचमी को बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि गाडू घड़ा तेल कलश यात्रा की तिथि भी तय की जाती है। इस दिन कपाट खुलने से पूर्व गाडू घड़ा तेल कलश को नृसिंह मंदिर, योग बदरी पांडुकेश्वर होते हुए बदरीनाथ धाम लाया जाता है।
अखंड ज्योति दर्शन
कपाट खुलने के दिन बदरीनाथ मंदिर (Badrinath Temple) के गर्भगृह में प्रज्ज्वलित ज्योति के दर्शन का विशेष महात्म्य है। इस ज्योति को अखंड ज्योति कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि कपाट बंद होने से लेकर कपाट खुलने तक यह ज्योति निरंतर जलती रहती है।
श्रद्धालु इसे भगवान नारायण का ही चमत्कार मानते हैं। अखंड ज्योति के दर्शन से इच्छित फल की प्राप्ति और पुण्य मिलता है। इसके अलावा, भगवान को जिस घृत कंबल से ढका जाता है, उसे इस अवसर पर श्रद्धालुओं को प्रसाद स्वरूप वितरित किया जाता है।
घृत कंबल
बदरीनाथ मंदिर (Badrinath Temple) के कपाट जब शीतकाल के लिए बंद होते हैं, तो उससे पूर्व माना गांव की पांच कुंवारी कन्याओं द्वारा ऊन से बना एक कंबल तैयार किया जाता है। इस कंबल को बदरी गाय के घी में लपेटकर भगवान बदरीविशाल को ढका जाता है।
छह महीने बाद, नर पूजा के लिए मंदिर के कपाट खुलते हैं तो उस दिन इस घृत कंबल को भगवान बदरीविशाल के विग्रह से हटाया जाता है। घृत कंबल की स्थिति उस वर्ष का भविष्य तय करती है। यदि कंबल सही स्थिति में होता है, तो यह निष्कर्ष निकलता है कि वर्षभर देश में मौसम अच्छा रहेगा, अच्छी बरसात होगी, दैवीय और प्राकृतिक आपदाएं कम होंगी, और देश में खुशहाली रहेगी। मंदिर की परंपरा से जुड़े जानकार बताते हैं कि जिस घृत कंबल को भगवान नारायण छह महीने तक ओढ़ते हैं, उसमें भारतवर्ष का नक्शा अंकित होता है।
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